रविवार, 30 जनवरी 2022

ज़ुबाँ पर किसी के भी ताला नहीं है

 122 - 122 - 122 - 122

ज़ुबाँ पर किसी के भी ताला नहीं है।

चलन ख़ामुशी का निराला नहीं है।


भरे थाल को 'डस्टबिन' में न फेंको,

मयस्सर किसी को निवाला नहीं है।


भला किस तरह छेद हो आसमाँ में,

किसी ने भी पत्थर उछाला नहीं है।


लरज़ती है धड़कन मेरा नाम सुनकर,

अभी दिल से मुझको निकाला नहीं है।


मैं तस्लीम अपने ही किरदार में हूँ,

अभी ख़ुद को साँचे में ढाला नहीं है।


ग़रीबी ने ओढ़ी है चादर अना की,

बदन पर किसी का दुशाला नहीं है।


छलावा है 'ख़ुरशीद' तेरा सवेरा,

हज़ारों घरों में उजाला नहीं है।

©'ख़ुरशीद' खैराड़ी जोधपुर।

तस्लीम -स्वीकार्य

गुरुवार, 27 जनवरी 2022

ग़ज़ल: देखने में तो सरल लगती है

 2122 - 1122 - 22

देखने में तो सरल लगती है।

ज़िन्दगी फिर भी पज़ल लगती है।


एक लड़की है मेरे ख़्वाबों में,

झील में खिलता कँवल लगती है।


संगेमरमर सा बदन है उसका,

दूर से ताजमहल लगती है।


दर्द की बह्र हज़ज है शायद,

मेरी हर आह ग़ज़ल लगती है।


हिज्र की रात गुज़रती ही नहीं,

एक लंबी सी टनल लगती है।


कैसे जीते हैं न पूछो हमसे,

ज़िंदगी एक जदल लगती है।


रौशनी भी तेरी 'ख़ुरशीद' हमें,

तीरगी की ही नक़ल लगती है।

©'ख़ुरशीद' खैराड़ी, जोधपुर।

9001198483

ग़ज़ल: जान की आफ़त रफ़ाक़त हो गई

 2122 - 2122 - 212 

जान की आफ़त रफ़ाक़त हो गई।

इक वबा की लो इनायत हो गई।


आज रोते हो कि आफ़त हो गई।

कल तो कहते थे मोहब्बत हो गई।


सारी दुनिया से खफ़ा हो किसलिए,

क्या हुआ किस से अदावत हो गई।


बात कुछ थी, लोग समझे बात कुछ,

बाइस-ए-उलझन वज़ाहत हो गई।


आप ही तो थे हमारी काइनात,

आप रूठे तो क़यामत हो गई।


कोई सानी ही नहीं क्या नाम दें,

इस क़दर ओछी सियासत हो गई।


पूछिए 'ख़ुरशीद' से 'क्या हो गया?',

रौशनी से क्यों शिकायत हो गई।

©'ख़ुरशीद' खैराड़ी जोधपुर।

9001198483

रफ़ाक़त-मेलजोल, वबा-महामारी

बाइसे उलझन-उलझन का कारण

वज़ाहत-स्पष्टीकरण, सानी-समतुल्य

बुधवार, 16 सितंबर 2020

एक ग़ज़ल ओके

 एक ग़ज़ल, पहली बार प्रयुक्त रदीफ़ 'ओके' के साथ। एक प्रयोग आप सभी के आशीष का अभिलाषी।

आँखों पर पट्टी, होंठों पर ताला रक्खेंगे ओके !

हम इतिहास हमारे युग का काला रक्खेंगे ओके !


तेरे जयकारे बोलेंगे पीर हमारी बिसराकर,

आज छुपाकर अपने उर का छाला रक्खेंगे ओके !


जिस थाली में खाए छेद न उसमें कर पाए कोई,

हर थाली में विष का एक निवाला रक्खेंगे ओके !


तेरी चालीसा गाएंगे हर चैनल पर आकर हम,

हर आखर बालेंगे, बंद रिसाला रक्खेंगे ओके !


बिजली, पानी, रोटी, कपड़ा, रोज़ी चाहत है किसकी,

सर पर झंडा, बैनर एक दुशाला रक्खेंगे ओके !


मीलों पर ताले जड़ देंगे, हर इस्कूल रखेंगे बंद ,

मस्त रहें सब रिंद खुली मधुशाला रक्खेंगे ओके !


तू है चोर लुटेरा जाँच परख कर मान लिया सबने,

डर मत ! तुझको बस्ती का रखवाला रक्खेंगे ओके !


मरणासन्न विधायक जी को चमचों ने आश्वस्त किया,

हाथ में माइक और गले में माला रक्खेंगे ओके !


लाएंगे इक भोर उजाले वाली, अँधियारे में भी,

यूँ 'ख़ुरशीद' जी अपना दर्जा आला रक्खेंगे ओके !

©'ख़ुरशीद' खैराड़ी । जोधपुर ।

शुक्रवार, 27 मार्च 2020

इक्कीस दिन का सामाजिक अलगाव है इसलिए कोरोना के इक्कीस दोहे समर्पित हैं।
*कोरोना--इक्कीसी*
कोरोना के रोग का, केवल एक बचाव ।
घर में रहकर हो सफल, सामाजिक अलगाव ।।...1

दूरी मज़बूरी बनी, पास न आना यार ।
तेरे मेरे बीच में, कोरोना दीवार ।।...2

घर में दुबके आदमी, खाली हर दालान ।
गलियों के सब जानवर, देख हुए हैरान ।।...3

भोर हुई कलरव सुना, साँझ हुई गौ नाद ।
शोर थमा इंसान का, कुदरत से संवाद ।।...4

सड़कें सूनी हो गईं, चौराहे सुनसान ।
बेरौनक बाज़ार सब, आज बने मैदान ।।...5

राम-भरोसा ना रहा, मनवा हुआ उचाट ।
बैठा है भगवान भी, करके बंद कपाट ।।...6

महँगे वाले मॉल वो, सस्ते वाला हाट ।
बंद हुए होटल सभी, चौपाटी का चाट ।।...7

तीर्थ सभी सूने हुए, सूने सारे घाट ।
माला राखो हाथ में, पकड़ो घर की खाट ।।...8

मंगल-बुध-गुरु-शुक्र-शनि, सोम हुए बेकार ।
दफ़्तर में ताला जड़ा, हर दिन है इतवार ।।...9

साफ़ हुई आबोहवा, शांत हुआ हर शोर ।
दिखता है इस छोर से, पास बहुत वो छोर ।।...10

सड़कों ने कुछ साँस ली, बादल उड़े कपास ।
चहल-पहल तक रुक गई, गलियाँ हुईं उदास ।...11

नीलगगन उजला हुआ, धूल-धुँए से मुक्त ।
महका फिर वातावरण, ऑक्सीजन से युक्त ।।...12

सारे पहिये थम गए, सुस्त हुई रफ़्तार ।
रस्ते हैं राही नहीं, सिमटे कारोबार ।।...13

जित देखो उत थी कभी, केवल भागमभाग ।
पलटी मारी वक़्त ने, हुआ अचेत दिमाग ।।...14

चंद्रयान मंगल-मिशन, सपनों में आकास ।
आज धराशायी हुई, नर की ऊँची आस ।।...15

फ़ुर्सत के पल थे कहाँ, व्यस्त बड़े थे लोग ।
वक़्त काटना अब कठिन, है कैसा संजोग ।।...16

घर से बाहर भी कभी, था अपना संसार ।
घर ही अब संसार है, सिमटा हर विस्तार ।।...17

पंछी लौटे नीड़ को, लड़के आए गाँव ।
सबको अब अच्छी लगे, अपनी-अपनी ठाँव ।।...18

भटका बहुत गली-गली, पाया नहीं करार ।
घर में आकर जोगिया, अपनी जूण सुधार ।।...19

सारी दुनिया घूम ली, पाया घर में चैन ।।
उजली घर की भोर है, सुखकर घर की रैन ।।...20

मानव ने कितना किया, कुदरत से खिलवाड़ ।
कुदरत ने झट चित किया, धोबी पटक पछाड़ ।।...21
©कृते -- महावीर सिंह जोधपुर 9413408422

मंगलवार, 24 मार्च 2020

कोरोना-चालीसा

*कोरोना--चालीसा* (छंद-चौपाई)
दोहा--
*साँसें लेना हो दुभर, खाँसी तेज़ बुखार* ।
*सिर में भी हो दर्द यदि, लेवें झट उपचार* ।।
चौपाई--
चीन देश से विपदा आई । कोरोना जो नाम धराई ।।
सारे जग में फैली झटपट । मानवता पर छाया संकट ।।
फैल रही है जो अब घर-घर । सबके मन में इसका ही डर ।।
लील गई है जो इटली को । अमेरिका भी आज रहा रो ।।
सौ-सौ मौतें होती हर दिन । डॉक्टर काँपे लाशें गिन-गिन ।।
काँप रहा ईरान अभी तक । स्पेन गया लड़ते-लड़ते थक ।।
ज़हर हवा में ऐसा फैला । विश्व हुआ सारा ही मैला ।।
जित देखो उत मची तबाही । कोरोना ने आँख दिखाई ।।
छूने से जो फैले आगे । दूर रहे वो जिसको लागे ।।
रूस-फ्रांस भी बेकल बेबस । कौन बँधाए किसको ढाँढ़स ।।
दोहा--
*आए भारत भूमि में, कुछ जन करने सैर*।
*लौटे घर कुछ लाड़ले, रोग पसारे पैर* ।।
चौपाई--
भारत में भी अब कोरोना । छान रहा है कोना-कोना ।।
धीरे-धीरे पाँव-पसारे । काँप रहे हैं वासी सारे ।।
फैला इसका आज शिकंजा । केरल तक भी इसका पंजा ।।
राजस्थान समूचा आया । महाराष्ट्र पंजाब डराया ।।
सील हुई है सबकी सीमा । फैल रहा विष धीमा-धीमा ।।
नगर-नगर कर्फ़्यू का साया । तालाबंदी कर धमकाया ।।
सड़कें सूनी मार्किट सूना । मरघट सा है शांत नमूना ।।
रेल रुकी है बंद हुई बस । बंद सिनेमा मेले-सरकस ।।
लोग घरों में क़ैदी जैसे । वक़्त गुजारे जैसे-तैसे ।।
बाज़ारों से लोग नदारद । बंद हुई है अब तो संसद ।।
दोहा--
*भारत के सब लोग दें, अपना यह सहयोग* ।
*घर में ही कुछ दिन रहें, ना फैलावें रोग* ।।
चौपाई--
हाथ सफ़ाई से सब धोना । दूर भगाना है कोरोना ।।
मास्क लगावो मुँह पर भाई । घर में राखो साफ़-सफ़ाई ।।
मिलना सबसे नहीं ज़रूरी । मीटर भर की राखो दूरी ।।
छोड़ो अब तुम हाथ मिलाना । नमस्कार कर अब मुस्काना ।।
सामाजिक संपर्क हटाओ । रिश्ते रहकर दूर निभावो ।।
घर में ख़ुद को क़ैद करो अब । अलग रहें तो बच जाएं सब ।।
साबुन ही हथियार हमारा । कोरोना से जिसने तारा ।।
कोरोना से बचना है गर । साफ़ रहो सब घर में रहकर ।।
घर का पोष्टिक खाना खाओ । प्रतिरोधकता आप बढ़ाओ ।।
बूढ़ों-बच्चों और जवानों । कोरोना कमज़ोर न जानों ।।
दोहा--
*सारा भारत साथ दे, बाहर जाना बैन* ।
*लोग कड़ी गर ना बनें, टूटे तब यह चैन* ।।
चौपाई--
आओ बहनों आओ भाई । कोरोना से लड़ें लड़ाई ।।
निर्देशों का कर लें पालन । आना-जाना रोकें सब जन ।।
मत करना कालाबाज़ारी । समझो सबकी तुम लाचारी ।।
निर्धन अरु लाचार मिले तो । आप सहारा उसको भी दो ।।
मज़दूरों मज़बूरों की भी । आज मदद तुम करना साथी ।।
हम सबको है मिलकर लड़ना । अफ़वाहों में मत तुम पड़ना ।।
राष्ट्रभक्ति का आया अवसर । अपनी सरहद अपना ही घर ।।
कोरोना योद्धाओं का भी । आज हुआ जन-जन आभारी ।।
डॉक्टर-नर्सें और सिपाही । करो शुक्रिया इनका भाई ।।
विश्व-विजेता हिन्द बनेगा । संकट सारा शीघ्र टलेगा ।।
दोहा --
*कोरोना से ले सबक, यह सारा संसार* ।
*कुदरत से खिलवाड़ का, रोकें अत्याचार*।।
©कृति-महावीर सिंह जोधपुर 9413408422

गुरुवार, 19 दिसंबर 2019

एक गीत वर्तमान हालत पर

बर्बादी का मेरी जिनको किंचित आज मलाल नहीं है ।
होंगे घुसपैठी ही शायद ये तो मेरे लाल नहीं है ।।

फूँक रहे जो मेरा आँचल ।
शहरों-शहरों करते दंगल ।
आग लगाकर भाग रहे जो ।
पकड़ो उनको उनसे पूछो ।
क्या यह उनका देश नहीं है?
या परिचित परिवेश नहीं है ?
मौन रहे तो होंगे पापी ।
सभी धुरंधर सभी प्रतापी ।
आज बनाकर टीमें-टोली ।
खेल रहे हैं खूँ की होली ।

मुट्ठी में बारूद भरे हैं कोई रंग गुलाल नहीं है ।
होंगे घुसपैठी ही शायद ये तो मेरे लाल नहीं है ।।

सड़कों पर पत्थर बरसाते ।
फूँक बसों को ये इतराते ।
हाथों में कानून उठाकर ।
फूँक रहे सरकारी दफ़्तर ।
छात्र अगर संजीदा होते ।
देख वतन की हालत रोते ।
भारत भू के उजले सपने ।
नहीं फूँकते घर को अपने ।
हाथ मशाले जलते परचम ।
आग लगी है पूरब-पश्चम ।

शांति अहिंसा की धरती पर क्या यह क्रांति बवाल नहीं है ?
होंगे घुसपैठी ही शायद ये तो मेरे लाल नहीं है ।।

कहाँ गया वो भाईचारा ।
'हिंदी हैं हम' का वो नारा ।
लाल-सलामी नीले झण्डे ।
केसरिया परचम ले डण्डे ।
भाई मिलकर करते दंगा ।
सुलग रहा है कहीं तिरंगा ।
हाथ तमंचा गाँधीवादी ।
और कफ़न भी लाई खादी ।
बापू के सपनों का भारत ।
लिखने बैठा नई इबारत ।
फूँक रहे घर को घरवाले कहीं विदेशी चाल नहीं है ।।
होंगे घुसपैठी ही शायद ये तो मेरे लाल नहीं है ।।

अँधा शासन मौन प्रशासन ।
सत्ता करती है शीर्षासन ।
सूरज आया माथे ऊपर ।
ओढ़ रखी है सबने चादर ।
सुलग रहे हैं यूपी दिल्ली ।
नौंच रही है खम्भा बिल्ली ।
चाह रहे हैं जो बँटवारा ।
उनको दो संदेश करारा ।
मेरठ-लखनव या कलकत्ता ।
सब पर भारत की है सत्ता ।
शारदा-सुतों की चुप्पी क्या जयचंदों को ढाल नहीं है ।
होंगे घुसपैठी ही शायद ये तो मेरे लाल नहीं है ।।

गूँगों चीखो शोर मचाओ ।
धरती ओ आकाश गुँजाओ ।
अँधों अपनी आँखें खोलो ।
जो दिखता है सच-सच बोलो ।
बैसाखी पर खड़ा हिमालय ।
बोल रहा भारत माँ की जय ।
थार-कच्छ या कोरोमंडल ।
ब्रहमपुत्र-गंगा-पुष्कर-डल ।
पूरब-पश्चिम, उत्तर-दक्खन ।
एक लहू है इक ही धड़कन ।

काट रहे हो जिसको क्या वो आश्रय देती डाल नहीं है ।।
होंगे घुसपैठी ही शायद ये तो मेरे लाल नहीं है ।।
©महावीर सिंह जोधपुर। 9413408422

बुधवार, 6 जून 2018

ग़ज़ल-तर्ज़-छोड़ दे सारी दुनिया किसी के लिए

212-212-212-212
तर्ज़-छोड़ दे सारी दुनिया किसी के लिए
इक दिया चाहिए रौशनी के लिए
जल रहा है मेरा दिल इसी के लिए

तुमसे कैसे कहें बोझ है ज़िंदगी
जी रहे हैं तुम्हारी ख़ुशी के लिए

'इक उसी' ने हमारी न परवाह की
हम तड़पते रहे 'इक उसी' के लिए

तुम पशेमां न होना मेरी मौत पर
है बहाने कई ख़ुदकुशी के लिए

एक पत्थर को दिल में बिठा ही लिया
लाज़मी था ख़ुदा बंदगी के लिए

तेरी उल्फ़त में इतना नफ़ा तो हुआ
दर्द मुझको मिला शाइरी के लिए

दिल में 'खुरशीद' के है यही आरज़ू
हो उजाला मयस्सर सभी के लिए
©खुरशीद खैराड़ी जोधपुर ।